ओ नीले गगन मैं तेरे सारे रंग चुराउंगी नयी भोर की तरह जो जागी हूँ गुलाबी शाम सी ढल जाउंगी फिर सियाही रात की गोद मे कहीं छिप जाउंगी या तेरी अंतहीन ऊँचाई में तारे सी टिमटिमाउंगी और जो तुम कह दो कभी कि धरा की गोद मे की मेरी शैतानी याद आती है तुम्हे तो टूट कर तुम्हे बताउंगी कि सुनती हू तेरी हर एक बात मैं मिट्टी से जुड़ कर फिर फूल बनकर एक नयी उम्मीद जगाउंगी और तुम्हे यही तो बताना है कि हर जनम तुम्हे पाउंगी तेरे ही आँचल तले फिरसे खिलखिलाउंगी और ऐसे ही फिर सताउंगी माँ तुम क्या इस अंबर से कम हो? तुम ही तो नभ नीलम हो गोद तुम्हारी कभी ना छोटी पड़ती मैं कितनी ही बड़ी हो जाउन तुम्हारी गोद मे ही सुकून अतुल्य पाउंगी
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Maa - Maa More than Random but Unadulterated!
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aadhi poori kahani sunakar , "amma baki sambhal lena", and biggest of the problems seem to be solved already! having you with me, bukhaar also seems like blessings vo thoda extra pyaar, or tumhara raat ko baar baar kambal udhana mai gehri neend me to hoti thi par fir bhi pata chalta hai ki tum raat bhar nahi soti thi bukhar utra ki nahi, badha to nhi bas yahi check karti rehti. galtiyan meri aise bhool jati ho jaise kuch hua he nahi badle me mujhse expectations bhi all to benefit me kaise karti ho aisa amma? who in the world can equate this love mumma? On top of that khud masterchef hokar, Jab mai tel wali kadhai ke epicenter par kitchen me earthquake lati hu, You fear so much yet record me as if duniya ki best dish banne ja rhi hai. i fail to express to you and sometimes i rather upset you but you know it all before i speak and you know how insufficient saying "i love you" to you is forever going to be all i have to say is ye jo tum pooja karne bolti ho na kisi
Fly. Because you matter!
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Fly, So I have someone with me in the sky! Do not sink down! Rise up and above so high, Grow, this is what I wait by! Knowing that you matter to me might not matter to you right now. But there might come a second of that minute when knowing this would make you feel better. And then, at that moment, it would matter! Do know, there is always someone, to whom you matter! Someone, who wants you to fly, soaring high up in the sky!
छूने ही नहीं देती अपने पैर मुझे, पता नही कौनसी दौलत छिपा रखी है!
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सुना था वो पैसे पल्लू में बांध कर रखती है अब पल्लू की जगह दुपट्टा तो होता है, पर उसके कोने में बाँधती वो पैसे नहीं| लेकिन कुछ दौलत तो ज़रूर है, जो वो अपने पैरों में छिपा कर रखती है, छूने ही नहीं देती। जो पहुंच ही जाए हाथ मेरा, तो झट से फटकार देती है। मेरी छोटी सी कन्या हो कह कर टाल देती है। हां कुछ दौलत तो ज़रूर है माँ के कदमों में, जो वो मुझसे छिपा कर रखती है। मेरी छोटी सी कन्या हो कह कर, अपने पैरों से तुरंत ही मेरा हाथ हटा देती है।
वो माया कुछ गहरी थी
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सहज सुहाती मन को लुभाती ये प्यारे चाँद की वो आभा थी | स्वर्ण से आती चाँदी हो जाती, क्या तुमने देखी वो माया थी? कंचन सोन प्रभा भानु की, सोम रजत कैसे बन जाती! कुछ बसंती से दिन की शीतलता, कैसे निशा मे ढल जाती है! चंचल सी चंद्रकला की अटखेली में बरसती, कुछ धुन्ध थी नभ तले, कुछ आँखों मे खोई थी | कुछ उड़ती चकोरी की श्वेत उड़ान में भी, चहक उसके खुले आसमान मे होने की थी | पॅल्को के पर्दे पर लटकी, झिलमिल मोती सी एक माला थी, जो पल्छिन सी झूल गयी, माला वो किसने पिरोइ थी? कुछ देर ठहर जो तुम जाती, बोली वो सुंदर छाया थी, दिखला देती ब्रह्मांड ही तुमको, ये तो केवल ऊपरी काया थी !
क्या कनक चाह मैं धरूं?
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Possession of gold brings mere ego. While, what these blooming buds teach one is, simplicity, compassion, and calmness. The strength they gather from each ray of crimson sun to rise amidst the bed of thorns and the humility to realize the thorn as their own part and still spread their sweet scents across, is what is to be imbibed. These bloomings have nothing but the satisfaction borne out of the fame they earn to cheer a million hearts! Material wealth is nothing more but a mirage...the more one's lured, the bolder the thirst for it! मैं कनक चाह क्या धरूं, तुम यूं जो मुझे सजाते हो, जो रोज़ नए हो जाते हो, और नई प्रभा जागते। तुम यूं जो कायाकल्प करते हो, और नए रंग यूं मुझे चढ़ाते हो, मैं कनक चाह क्या धरूं, तुम तरुण मुझे बनाते हो। रश्मि जो तुम्हारी जननी है, सविता गोद तुम खेले हो, सोई फलतः तुम प्रिए, यूं मीठी लालिमा समेटे हो | तुम अग्नि की सी ज्वाला लिए, अपार सशक्त मुझे बनाते हो, तुम सामर्थ मुझमें भरते हो| स्वयं कांटों से शोभित, साहस की प्रेरणा भी तो देते हो| मैं कनक चाह क्या धरूं, मुझ
The dew that adorned my garden!
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The dew that could fall into an oyster, to turn into an invaluably treasurable pearl, came into the lap of a leaf, glistening, adorning my garden. Yet serenely precious. Rolled into tiny drops, and settled in graceful tranquility. So ethereal that you can't resist touching it but even so pristine that you are not willing to put an end to its existence. How paradoxical. Isn’t it? It's about the dew that adorned my garden!