ओ नीले गगन

मैं तेरे सारे रंग चुराउंगी

नयी भोर की तरह जो जागी हूँ

गुलाबी शाम सी ढल जाउंगी

फिर सियाही रात की 

गोद मे कहीं छिप जाउंगी

या तेरी अंतहीन ऊँचाई में तारे सी टिमटिमाउंगी


और जो तुम कह दो कभी

कि धरा की गोद मे की मेरी शैतानी याद आती है तुम्हे

तो टूट कर तुम्हे बताउंगी

कि सुनती हू तेरी हर एक बात मैं


 मिट्टी से जुड़ कर फिर

फूल बनकर एक नयी उम्मीद जगाउंगी

और तुम्हे यही तो बताना है

कि हर जनम तुम्हे पाउंगी 

तेरे ही आँचल तले 

फिरसे खिलखिलाउंगी

और ऐसे ही फिर सताउंगी


माँ तुम क्या इस अंबर से कम हो?

तुम ही तो नभ नीलम हो

गोद तुम्हारी कभी ना छोटी पड़ती

मैं कितनी ही बड़ी हो जाउन

तुम्हारी गोद मे ही सुकून अतुल्य पाउंगी


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