घमंड था मुझे सूरज को जगाने का...
पर सामने वाले घर में एक माँ रहती है,
जो रोज़ चाँद को सुलाती है, और अपनी गोद में चाँद के टुकड़े को!
फिर मुझे याद आया,
मेरे भी संग में एक समर्पण की मूरत रहती है,
जो चाँद से उतरी परी, मानो रात भर मेरी रखवाली को जागी है
तबियत ठीक न हो या सिर्फ चादर ही सरक गया हो मेरा
आस पास कोई परेशानी तो नहीं
हर एक बात पर नजर रही है उसकी।
मेरी एक एक रात की नींद पूरी करने के लिए अनगिनत रातें जगी है वो!
घमंड था मुझे सूरज को जगाने का
पर आज भी चाँद को सुलाती है वो!
और मुझसे कहती है तुम्हें सूरज को जगाना है!
बहुत ही सुंदर लेखन है ,लिखते रहें
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